ध्यान के विषय में कहा गया है- अचिन्तैव परं ध्यानम्। To think of nothing is Meditation. ध्यान का अर्थ है-एक बिन्दु पर आना। पूर्ण एकाग्रता की अवस्था में ही हम जीवन के चौथे आयाम को जान सकते है। भारतीय दर्शन में जिसे समाधि कह कर ब्यान किया गया है। यह एक काल्पनिक नहीं, यर्थाथ अनुभव है। सूर्य की किरणों से तब तक आग नहीं निकलती जब तक उन्हें एक बिन्दु पर केन्द्रित नहीं किया जाता। एकाग्रता के बिना कुछ भी सम्भव नहीं। पानी में एक छोटा सा पत्थर भी डालो तो उसकी भी तरंगें उठती है। स्थिर पानी में ही हम अपना प्रतिबिम्ब देख सकते है, हिलते हुए में नहीं। अतः ध्यान के वक्त एक छोटा सा विचार भी मन को चंचल कर देता है। किसी भी वस्तु का आयतन कम करने से उसका घनत्व बढ़ जाता है जिससे उसकी गुरूत्वाकर्षण शक्ति में वृद्धि हो जाती है। अतः हम मन का आयतन (फैलाव) कम करके इसकी शक्ति बढ़ा सकते है। एकाग्र मन की शक्ति फैले हुए मन से अधिक होती है।
ध्यान के वक्त महत्व स्थिति का नहीं, स्थिरता का होता है। आप किसी भी स्थिति में रहिए, पर स्थिर होकर। दूध में जामुन लगा देने के बाद उसे स्थिर छोड़ देना चाहिए। अपने आप वह दही में बदल जायेगा। भले ही वह कटोरे में हो, लोटे में हो या गिलास में। इसी प्रकार दूध को उबालने के बाद यदि स्थिर छोड़ दिया जाए तो मलाई अपने आप उपर आ जायेगी। अतः किसी भी स्थिति में स्थिर होकर ध्यान करने से आत्मा अपने आप ऊपर आ जाती है। क्योंकि हल्की चीजें ऊपर उठती है और आत्मा सबसे हल्की है।