“जो ब्रह्मण्डे सोई पिण्डे, जो खोजे सो पावै”
यह भारतीय दर्शन की सबसे प्रसिद्ध सूक्ति है । कितनी हैरानी की बात है कि एक छोटे से परमाणु और एक सौरमण्डल की कार्यप्रणाली एक जैसी ही होती है अर्थात् एक परमाणु, एक छोटा-सा सौरमण्डल है। सर्वप्रथम 1606 में केपलर ने ही यह सिद्ध किया था कि ग्रह सूर्य के चारो तरफ अण्डाकार पथ पर परिक्रमा करते है और यही बात 1906 में सोमरफील्ड ने परमाणुओं के इलेक्ट्रोनों के संदर्भ में सिद्ध की थी। सोमरफील्ड ने सिद्ध किया था कि यदि हाइड्रोजन के परमाणु को सूई की नोक के बराबर माने तो उस अनुपात में उसका इलेक्ट्रोन उससे 12 मीटर की दूरी पर होगा और यह दूरी उतनी ही है जितनी पृथ्वी की सूर्य से तथा दोनो का परिक्रमा पथ भी अण्डाकार है। इस प्रकार एक परमाणु एक छोटा-सा सौरमण्डल है। यह कुदरत की अद्भुत इंजीनियरिंग है।
एक बार किसी ने मुझसे पूछा की क्या इस सारे ब्रह्माण्ड को एक ही नज़र में देखा जा सकता है? मैंने कहा- हाँ, यदि आप सचमुच एक ही नज़र में सारे ब्रह्माण्ड को देखना चाहते हो तो आईने में जाकर देखो । मनुष्य ब्रह्माण्ड की प्रतिमा है। क्या आपने कभी आईना देखा है। एक और एक दो होते हैं। लेकिन जब आप आईने के सामने खड़े होते हैं तो वहां एक और एक दो नहीं, तीन होते हैं । एक आप, एक आईना और तीसरा आपका अक्स । जो, आपके हंसने पर हँसता है, आप जब उसकी तरफ देखते हैं तो वह आपकी तरफ देखता है और जब आप उससे मुंह फेर लेते हैं तो वह भी आपसे मुंह फेर लेता है । वह है आपका प्रतिबिंब। ध्यान खुद की, खुद के द्वारा खोज है। जिस दिन भी आप ध्यान के आईने में खुद को देखेंगे तो आप आईने में सारा ब्रह्माण्ड पाएंगे । आपका प्रतिबिंब कुछ इसी तरह का होगा।