ऊर्जा के स्रोत के स्तर का आध्यात्मिक उत्थान में अहम योगदान है। इसलिए भोजन का चुनाव करते समय हमें प्रकाश और प्रतिक्रिया के सिद्धान्त को ध्यान में रखना चाहिए, क्योंकि ध्यान प्रकाश की ही यात्रा है और ऊर्जा का स्रोत प्रकाश के जितना नजदीक होगा; यह यात्रा उतनी ही सुखद होगी। अपने द्वारा किये गये कर्मो की प्रतिक्रिया से हम बच नहीं सकते, क्योंकि आजादी कभी बेहिसाब नहीं होती। अतः हमारे भोजन में ये दोनों विशेषताए जरुर होनी चाहिए कि- यह प्रकाश के निकट हो, और इसकी प्रतिक्रिया कम से कम हो। ये दोनों विशेषताएं केवल शाकाहारी भोजन में ही है। सौर ऊर्जा, ऊर्जा का श्रेष्ठतम रूप है। ऊर्जा का प्रथम स्रोत प्रकाश है, दूसरा स्रोत शाकाहार और तीसरा मांसाहार है। किसी भी प्रकार की आध्यात्मिक उन्नति शाकाहार के बिना संभव नहीं है। संसार के सभी संतो-महात्माओं ने शाकाहारी भोजन पर जोर दिया है। एशिया और यूरोप के प्रथम दार्शनिक महत्मा बुद्ध और पायथागोरस भी शाकाहारी दार्शनिक थे। जीवन के लिए सभी पेड़-पौधे प्रकाश पर और सभी जीव-जन्तु पेड़-पौधों पर निर्भर रहते है। यदि हम आहार श्रृंखला पर गौर फरमाएं तो पता चलता है कि आहार श्रृंखला की शुरूआत पेड़-पौधों से ही होती है। भोजन का प्राथमिक स्रोत पौधे है , जो प्रकाश संश्लेषण की विधि से सौर ऊर्जा को भोजन में परिवर्तित करते है। आहार श्रृंखला का अर्थ है- ऊर्जा का एक जीव से दूसरे जीव तक भोजन के रूप में स्थानांतरित होना। आहार श्रृंखला की हर कड़ी पोषक स्तर कहलाती है और प्रत्येक पोषक स्तर पर ऊर्जा की क्षति होती है। इसलिए यदि बीच की एक कड़ी को निकाल दिया जाए तो ऊर्जा की मात्रा बढ़ जाती है अर्थात् यदि कोई वनस्पति खाने वाले जानवार की बजाए, सीधा अनाज आदि खाए तो आहार श्रृंखला छोटी होने के कारण एक शाकाहारी को मांसाहारी से अधिक ऊर्जा मिलती है।

प्रकृति ने मनुष्य को मांसाहार के लिए नहीं बनाया। प्राकृतिक वही होता है, जिसे पूरी तरह अपनाया जा सके। इस संसार में एक भी मनुष्य ऐसा नही है जो पूरी तरह मांसाहार पर निर्वाह कर सके, जबकि करोडो व्यक्ति ऐसे है जो पूरी तरह शाकाहार पर गुजारा करते है। मांसाहार को त्यागे बिना रूहानी चढ़ाई करना ठीक उसी प्रकार है, जैसे कोई ऐसे एस्केलेटर पर चढ़ रहा हो; जिसकी पौडिया उसकी चढ़ने की गति से ज्यादा रफ़्तार से नीचे आ रही हो। कुछ लोग कहते है की अण्डे तो खा ही सकते है। लेकिन प्रकृति ने अण्डे को जीवन की यात्रा के लिए बनाया है। अण्डा कुदरत की जीवन परिवहन प्रणाली का माध्यम है। इसे खाना कुदरत के परिवहन विभाग से छेड़छाड़ है। यदि हम अप्रिय प्रतिक्रिया से बचना चाहते है तो अप्रिय क्रिया से बचना चाहिए। विकासवाद के सिद्धांत के अनुसार मनुष्य का विकास बंदरो से हुआ है। अमीबा से मनुष्य तक की इस विकास यात्रा का सबसे बड़ा पुरस्कार अंगूठा है। समस्त जीवजगत में अंगूठा मनुष्य के आलावा केवल बन्दरों के पास है। वनस्पति जगत से अंगूठे का सीधा सम्बन्ध है।  अतः  जिसके  पास  अंगूठा  है  उसे   कुदरत   ने   शाकाहार  के   लिए  बनाया  है।

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