(Awakening of Cosmic Intelligence)
ध्यान ऋतम्भरा प्रज्ञा {Cosmic Intelligence} का जागरण है | योगदर्शन के प्रथम अध्याय के 48वें श्लोक में हमारे इस सुप्त सामर्थ्य का वर्णन है | हम सब की बुद्धि दो प्रकार की होती है | एक वह जो इंद्रियों के अनुभव से बनती है, जो कि सबकी अलग-अलग होती है | क्योंकि इंद्रियों के अनुभव सबके अलग-अलग होते हैं | सबका जन्म अलग-अलग वातावरण में होता है | इसे तत्कालिक या सापेक्ष बुद्धि {Relative Intellect} भी कहते हैं, जिसका विकास अनुभव की सापेक्षता के साथ साथ होता है और ये हमेशा बदलती रहती है | दूसरी वह बुद्धि जिसे Cosmic Intelligence कहते हैं, जो सबकी एक जैसी होती है, जो आत्मा के प्रकाश से बनती है | इसलिए यह हमेशा स्थिर होती है | भगवान कृष्ण ने गीता में इसे स्थितप्रज्ञा कहा है | यह बुद्धि सबके भीतर एक जैसी होती है | इसे ही ऋतम्भरा प्रज्ञा के नाम से जाना जाता है | यही प्रज्ञा हम सबकी मूल पहचान है | इसी के कारण हम सबकी मूल प्रकृति एक जैसी होती है | ऋतम्भरा प्रज्ञा हमारी पसंद और नापसंद के मूल स्वरूप का निर्धारण करती है | जैसे कि हम सब, सर्वश्रेष्ठ सुख की तलाश में हैं और साथ ही यह भी चाहते हैं कि वह सुख हमेशा बना रहे | हममे से कोई भी खुद के साथ हिंसा नहीं चाहता और ना ही कोई मरना चाहता है | चाहत की अनंतता और अमरता इस बुद्धि की विशेषताएं हैं | क्योंकि यह बुद्धि भी अनंत और अमर है |
समस्त प्राणी जगत में ऋतंभरा का निवास है | संत ज्ञानेश्वर ने इसी प्रज्ञा के जागरण से भैसे के मुख से वेद मंत्रों का उच्चारण करवाया था | संत-महात्मा किसी स्कूल कॉलेज में नहीं गये, फिर भी उनके द्वारा लिखे गये महाकाव्य एक महानदी की तरह है, जिसका प्रवाह और प्रभाव अद्वितीय है | ध्यान ऋतम्भरा प्रज्ञा के जागरण की वैज्ञानिक विधि है | यह प्रज्ञा सूर्योदय की तरह हमारी देखने और करने की क्षमता का विस्तार कर देती है | इसके जागरण से मनुष्य को कुदरत के सभी नियमो ज्ञान हो जाता है और उसकी निर्णय क्षमता बढ़ जाती है | वह असीम आनंद की अनुभूति करता है और सर्वज्ञ हो जाता है | इसकी जागृति ही मनुष्यता का सच्चा गौरव है |