ये समय है भारत के आध्यात्मिक वैभव को याद करने का। एकान्त का महत्व आखिर हमसे बेहतर कौन जानता है ? आइये हम सब मिलकर कठिनाई की इस घडी को आत्मज्ञान के अवसर में बदले। आओं हम अपने देश की इस महान विरासत को समझे। इस विरासत को हम अध्यात्म के नाम से जानते है। इसकी पहचान के लिए ध्यान की जरुरत है और ध्यान करने के लिए जिसकी सबसे ज्यादा जरुरत है वह है- एकान्त । जो कि हमे आजकल मिला हुआ है। एकान्त बन्धन नही साधन है, खुद में आनंद की तलाश करने का। हमारे सन्तो महात्माओं ने एकान्त में साधना करके ही आध्यात्मिक विज्ञान के अनेक रहस्यो को उजागर किया है। 21वीं सदी मन और आत्मा के रहस्यो को जानने की सदी है। तो आइये जाने कि क्या कुछ छिपा हुआ है हमारे भीतर। जिस प्रकार एक छोटा सा परमाणु अपने आप में एक छोटा सा सौर मण्डल होता है उसी प्रकार मनुष्य भी एक छोटा सा ब्रह्माण्ड है।
अब तक के वैज्ञानिक इतिहास में एडिसन के नाम सबसे अधिक 1093 पेटेन्ट दर्ज हैं। जिनसे उनको करोङो रुपयों की आमदनी होती थी। लेकिन लूईपाश्चर ने अपने एक भी आविष्कार का पेटेन्ट नहीं करवाया, तो पाश्चर ने क्या खो दिया और एडिसन अपने साथ क्या ले गये। एडिसन को 1093 पेटेन्ट करवाकर भी सन्तोष नही मिला और पाश्चर को रैबीज के Injection जैसी जीवनदायनी खोज पर बिना किसी पेटेन्ट के सन्तोष मिल गया। इससे साबित होता है कि – Satisfaction is a state of mind. वस्तुओं से किसी को भी सच्चा सुख नहीं मिल सकता। यदि ऐसा होता तो महात्मा बुद्ध सबकुछ छोड़ कर जगलों में न जाते और ना ही रोमन सम्राट नीरो खुदकुशी करते। अमीबा से मनुष्य तक का जितना भी विकास हुआ है समय और स्थान को कम करने के लिए ही हुआ है, परन्तु ना तो वह समय किसी के पास है और ना दिलों की दूरियां कम हुई है। जिस सुख की तलाश हम बाहर कर रहे है, इतिहास गवाह है कि वह आनन्द आज तक किसी को भी बाहर नहीं मिला है और ना ही बाहर मिलेगा। आओं हम स्वास्थ्य कारणो से मिले इस एकान्त का सबसे बेहतर उपयोग करे। प्रतदिनि कम से कम 24 मिनट(एक घड़ी) सुखासन में स्थिरतापूर्वक बैठ कर ध्यान करे।