भारत भूमि संतो-महात्माओं का प्रिय स्थल रही है। मुझे इसके दो कारण नज़र आते है। पहला – शाकाहार की व्यापकता , दूसरा – विचारों की उदारता। शाकाहार और वैचारिक उदारता यहाँ के निवासियों का मूल स्वाभाव है। यही कारण है की सबसे ज्यादा दार्शनिक विचारधाराओं की उद्गम स्थली भारतभूमि ही रही है । न्याय दर्शन, सांख्य दर्शन, योग दर्शन, मीमांसा दर्शन, वैशेषिक दर्शन, वेदान्त दर्शन, बौद्ध दर्शन, जैन दर्शन, नाथ पंथ, निर्गुण पंथ, शून्यवाद, स्यादवाद, अद्वैतवाद, विशिष्ट अद्वैतवाद, द्वैतवाद, द्वैताद्वैतवाद, शुद्धाद्वैतवाद, अविभागाद्वैतवाद, भेदाभेदवाद, शैवविशिष्ट अद्वैतवाद, आलवार, नयनार आदि अनेक गौरवशाली विचारधाराओं से यह भूमि सिंची गयी है।
मेरे गुरुदेव श्रीराम दूबे जी की कृपा से अपनी जीवन यात्रा के दौरान मुझे भी कुछ सिद्ध महापुरुषों से निजी भेंट का पावन सुअवसर मिला। मेरी आध्यात्मिक पिपासा को देखते हुए उन्होंने स्वयं मुझे कुछ महात्माओं से मिलने को भेजा। उन्ही में से एक महापुरुष श्री राम लाल जी सियाग थे। आज मैं यहाँ उन्ही की चर्चा करना चाहूँगा। श्री राम लाल जी सियाग एक अद्वितीय सिद्ध पुरुष थे। मैं अपने गुरुदेव से मिलने अक्सर बीकानेर जाता रहता था। एक दफ़े दूबे जी ने मुझसे कहा कि तुम्हे मैं एक सिद्ध पुरुष से मिलवाना चाहता हूँ। उनका नाम रामलाल सियाग है। दूबेजी एक दिव्यदर्शी महापुरुष थे। वे एक ही नज़र में किसी के भी मूल स्वरुप को जान लेते थे। दूबेजी एक विख्यात ज्योतिर्विद भी थे। गुरुदेव सियाग के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने मुझे बताया कि उन दिनों श्री राम लाल सियाग जी स्वास्थ्य कारणों से मुझसे मिलने आये। हालांकि उनकी जन्मपत्री के अनुसार तो मारकेश की महादशा चल रही थी लेकिन हमने जैसे ही सियाग जी को देखा, हम हैरान हो गये। हमने देखा कि वे तो पूर्व जन्म के तपस्वी है। तपस्या जन्म जन्मांतर चलती रहती है। ये वो पूंजी है जो कभी नष्ट नहीं होती। फिर हमने उन्हें गायत्री मन्त्र जपने के लिए कहा। हमे अंतःप्रेरणा हुई की इससे इनकी तप की अग्नि प्रकट हो जाएगी और हुआ भी ऐसा ही। राम लाल सियाग जी भी इस मुलाकात का जिक्र अपने सत्संगो करते रहे है। सिद्ध योग मानव सभ्यता को उनकी एक महान देन है।
इस चर्चा के बाद उन्होंने अपने सुपुत्र देवदत्त को मुझे सियाग जी से मिला लाने के लिए कहा। देवदत्त जी मुझे अपने स्कूटर से राम लाल सियाग जी के घर छोड़ आये। मेरी उनसे यह मुलाकात 2001 में उन्ही के घर पर (जयनारायण व्यास कॉलोनी- बीकानेर) हुई। दूबे जी और रामलाल जी सियाग एक दूसरे से भली भांति परिचित थे। जैसे ही मैं रामलाल जी सियाग के कमरे में दाखिल हुआ, मैंने तख़्त पर एक तेजस्वी महात्मा को पाया। गुरुदेव सियाग से मेरा परिचय करवाने के बाद देवदत्त जी चले गये। तत्पश्चात गुरुदेव से लगभग एक घंटे तक मेरा आध्यात्मिक विमर्श हुआ। नाथ पंथ के दार्शनिक सिद्धांतो पर हमारी चर्चा हुई। उनके ठीक पीछे की दीवार पर एक महात्मा की फोटो थी। मैंने उनके बारे में पूछा तो गुरुदेव ने बताया कि वे उनके गुरु श्री गंगाई नाथ जी महाराज है। श्री राम लाल जी सियाग ने मुझे मेरे अध्यात्मिक भविष्य के लिए भरपूर स्नेह और आशीर्वाद दिया। उन्होंने अपने सिद्धयोग के विषय में भी बताया। यह एक अद्भुत योग है। यह योग भौतिक और अभौतिक दोनों ही स्तरो पर मानव के लिए कल्याणकारी हैं। यह एकमात्र इस तरह की योग पद्धति है जिसमे रूहानी उन्नति के साथ–साथ लाईलाज शारीरिक रोगों के ईलाज की सैद्धांतिक मान्यता है और उनके सिद्ध योग से ऐसा हुआ भी है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से मैं इस सिद्धान्त से सहमत हूँ और समय आने पर मैं इसकी वैज्ञानिक व्याख्या करूंगा।