जो वस्तु जितनी भारी होती है उसकी कीमत उतनी ही कम होती है और जो वस्तु जितनी हल्की होती है उसकी कीमत उतनी ही ज्यादा होती है। उदाहरण के तोर पर रोटी, पानी और हवा हमारे भोजन का सम्मिलित रूप है। इनमें से हमारे जीवन के लिए रोटी से अधिक महत्वपूर्ण पानी और पानी से अधिक महत्वपूर्ण हवा है। हम रोटी के बिना कुछ दिन जी सकते है लेकिन पानी के बिना एक दिन भी नही जी सकते और हवा के बिना तो कुछ पल भी नही जी सकते अर्थात खाने से अधिक महत्वपूर्ण पीना और पीने से अधिक महत्वपूर्ण सांस लेना है। अतः शरीर से अधिक महत्वपूर्ण मन है और मन से ज्यादा महत्वपूर्ण आत्मा है। जिस प्रकार भोजन इन तीनो तत्वो का समुच्य है उसी प्रकार जीवन आत्मा, मन और शरीर का समुच्य है-
ध्यान हमारी चेतना का विकास करता है और इतिहास में जो भी
महान उपलब्धियां वे सब विकसित चेतना के मनुष्यों की देन है।
चाहे वे राईट बन्धुओं के द्वारा हवाई जहाज बनाना हो या
लुईपास्चर के द्वारा रेबिज का इंजेक्शन खोजना। ध्यान से मनुष्य
की अंर्तदृष्टी प्रखर होती है। उसकी समझ का विस्तार होता है और सिनेमा के पर्दे की तरह प्रकृति के सहस्य उसके सामने उजागर होने लगते है।
जैसे-जैसे ध्यान की गहराई बढ़ती जाती है, इन्सान को प्रकृति के रहस्यों का पता लगने लगता है। मेंडलिफ ने आवृत सारणी की खोज intuition की अवस्था में ही की थी। ध्यान जीवन की सभी सफलताओं का आधार है। सफलता की सम्भावना उतनी ही ज्यादा होती है जितनी ध्यान की गहराई। जिस प्रकार धनुष का बाण जितना पिछे की ओर खींचा जाता है, वह उतना ही आगे की तरफ जाता है। जो व्यक्ति जितना अपने भीतर जाता है उसे उतनी ही सफलता बाहर मिलती है। जो भीतर से शून्य है, वह बाहर से भी शून्य है। किसी वृक्ष का बाहर उतना ही विकास होता है जितना उसकी जड़ो का होता है। तो आईए प्रतदिनि कम से कम 12 मिनट(आधी घड़ी) सुखासन में स्थिरतापूर्वक बैठ कर ध्यान करे।