तीसरा नेत्र, दसवां दरवाजा, आज्ञा चक्र, छठी इंद्री, भृकुटी आदि सबका एक ही अर्थ है। यह एक ऐसी अतीन्द्रिय क्षमता है जो सभी मनुष्यों में है। दरअसल नेत्र तीन प्रकार के होते है-

चर्म चक्षु- सामान्य ज्ञान

ज्ञान चक्षु- विशेष ज्ञान

दिव्य चक्षु- पूर्ण ज्ञान

पूर्णज्ञान संतो का होता है, विशेषज्ञान विज्ञान का तथा सामान्य ज्ञान का सम्बन्ध आजीविका से है जो कि जानवरों को भी होता है। परम सत्य का दीदार ना तो राबर्ट हुक के माइक्रोस्कोप से हो सकता है और ना ही गैलीलियो के टेलीस्कोप से। इसके लिए तो दिव्यचक्षु चाहिए, जो केवल समाधि से ही प्राप्त होते हैं। चर्म चक्षुओं से हमें सूर्य गतिशील और चंद्रमा प्रकाशवान दिखाई देता है लेकिन आज हम जानते है कि ये सच नहीं है। जिस विज्ञान से हमें यह जानकारी मिली है उसे ही ज्ञान चक्षु कहते है। दिव्य दृष्टि की दो विशेषताएं होती है। दिव्य दृष्टि “दूरदर्शी और पारदर्शी” होती है। दिव्यदृष्टि संपन्न महात्मा किसी भी पदार्थ के आर पार देख सकते है और दूरी दो प्रकार की होती है- समय की दूरी तथा स्थान की दूरी। जिसकी दिव्य दृष्टि जागृत है वह हजारो किलोमीटर दूर खड़े और हजारो वर्ष बाद जन्म लेने वाले व्यक्ति को समान रूप से देख सकता है।

दिव्य दृष्टि की अवधारणा कोई मिथक नहीं है। यह एक ऐसा यथार्थ है जिसके सामने सबकुछ मिथ्या लगता है। भारत में तीसरे नेत्र की सत्ता का पता प्राचीन काल से ही था। “भगवान शिव” के मस्तक पर तीसरा नेत्र दर्शाया जाता है। परामनोविज्ञान में दिव्य दृष्टि को CLAIRVOYANCE कहा जाता है। यह क्षमता इस संसार के सभी मनुष्यों में होती है। पर विडंबना यह है कि न तो हमें इसका पता होता और ना ही इन्हें जागृत करना आता। इससे पहले एक और समस्या यह है कि हम हर उस चीज़ को “नकारने की प्रवृति के शिकार” है जिसे हम नहीं जानते, जबकि मैंने अपनी पुस्तक “मन की 100 बातें” में यह सपष्ट किया है कि– हमारी अज्ञानता किसी के अनस्तित्व का पैमाना नहीं हो सकती। हमारी इसी प्रवृति के कारण गियार्दो ब्रूनो को अपनी जान गवानी पड़ी और गैलिलियो को 40 वर्ष जेल में रहना पड़ा। भौतिक विज्ञान Object का अनुसन्धान है जबकि अध्यात्म विज्ञान Subject का अनुसंधान है और हम जानते है कि Object से Subject का महत्व अधिक होता है। मनुष्य जड़ और चेतन का मेल है। अतः जड़ता की सीमा तक मनुष्य पर जड़ विज्ञान के नियम लागु है, लेकिन जड़ता की दहलीज से परे अध्यात्म विज्ञान के नियम लागु होते है और अध्यात्म चेतना का विज्ञान है। आओं ध्यान के जरिये अपनी आध्यात्मिक चेतना को जगाये। क्योंकि जाग जाना, जगाये जाने से कही ज्यादा बेहतर है।

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