जिस प्रकार एक नदी के कई घाट होते है, उसी प्रकार जीवन की इस नदी के भी शरीर रुपी अनेक घाट है । अगले घाट के पानी पर पिछले घाट के पानी का असर रहता है। ठीक इसी प्रकार हमारे वर्तमान जीवन पर पिछले जीवन के कर्मो का प्रभाव रहता है। भाग्य वह अटल विरासत है जो हमें भावनाओं और हालातों के रूप में मिलता है और हम सब जानते है कि एक जैसे हालात में भिन्न –भिन्न भावनात्मक स्तर के लोगों की प्रतिक्रिया भिन्न-भिन्न होती है और उसी अनुसार परिणाम भी अलग-अलग होते है। सभी लोग चेतना के विकास की यात्रा कर रहे है और भिन्न-भिन्न स्तरों पर है। यही वजह है कि इस संसार में कभी भी एक ही विचार पर सभी लोगो को सहमत नहीं किया जा सकता। एक जैसे स्तर के लोगो की एक जैसे विचार पर एक जैसी प्रतिक्रिया होती है। जैसा की मैंने अपने पिछले लेख में बताया कि पूर्वजन्म में जीव का जैसा स्वरूप व गति होती है, इस जन्म में भी मनुष्य संस्कारवश उसी “आकृति और प्रकृति” का अनुसरण करता है। आज हम चर्चा करते है-नाक की बनावट पर । हाथ पर अंगूठा और चेहरे पर नाक बेहद महत्वपूर्ण है। नाक की बनावट का मनुष्य की निर्णय लेने की क्षमता से सीधा-सीधा सम्बन्ध है। इस नाक की आकृति पर जरा एक नज़र डालिये-
नथुना नाक की बनावट का एक महत्वपूर्ण भाग है। जब नथुने का फैलाव ज्यादा होता है तो मनुष्य की निर्णय क्षमता कमजोर हो जाती है और अक्सर वह गलत निर्णय ले बैठता है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह कितना पढ़ा-लिखा है। पढाई-लिखाई भौतिक परिवर्तन करती है, रासायनिक नहीं। लोहे के पत्थर से यदि लोहे की बाल्टी और साईकिल बना दी जाये तो इससे दोनों की चुम्बक के प्रति खिचांव और जंग लगने की प्रवृति बदल नहीं जाती । रासायनिक परिवर्तन अर्थात चेतना का विकास तो आध्यात्मिक उन्नति से ही होता है। अतः यदि किसी की नाक की बनावट ठीक न हो तो उसे निर्णय लेने से पहले अपने शुभचिंतको से राय जरूर लेनी चाहिए। केवल माथे की ऊंचाई ही नाक की दोषपूर्ण बनावट के दुष्परिणाम को कम करती है।