पूरी सृष्टी में परमात्मा ने केवल मनुष्य को ही वो शक्तिया दी है, जिन्हें जागृत करके मनुष्य ब्रह्माण्ड के सभी गुप्त रहस्यों का ज्ञाता बन जाता है| इसीलिए मनुष्य को “सृष्टी का सिरमौर” कहा जाता है | मनुष्य जड़ और चेतन का मेल है | अतः जड़ता की सीमा तक मनुष्य पर जड़ विज्ञान के नियम लागु है, लेकिन जड़ता की दहलीज से परे अध्यात्म विज्ञान के नियम लागु होते है और अध्यात्म चेतना का विज्ञान है | जड़ता का सम्बन्ध शरीर व इसकी जरूरत से है और चेतना का सम्बन्ध मन व इसकी इच्छा से है | मनोविज्ञान के अनुसार मन एक अभौतिक पदार्थ है अतः अभौतिक सत्ता ही इसे सदा के लिए संतुष्ट कर सकती है | भौतिक विज्ञान Object का अनुसन्धान है जबकि अध्यात्म विज्ञान Subject का अनुसंधान है और हम जानते है कि Object से Subject का महत्व अधिक होता है | खुदाई, खुद से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं हो सकती| परामनोविज्ञान ने जिन Metaphysical terms- ESP, CLAIRVOYANCE, TELEPATHY इत्यादि का प्रयोग किया है, उनकी उपलब्धि केवल Spiritual Technology से ही हो सकती है | ये क्षमताएं इस संसार के सभी मनुष्यों में जन्मजात होती है | पर विडंबना यही है कि न तो हमें इनका पता होता और न ही इन्हें जागृत करना आता | इससे पहले एक और समस्या यह है कि हम हर उस चीज़ को नकारने की प्रवृति के शिकार है जिसे हम नहीं जानते जबकि मैंने अपनी पुस्तक “मन की 100 बातें” में यह सपष्ट किया है कि – “हमारी अज्ञानता किसी के अनस्तित्व का पैमाना नहीं हो सकती” | हमारी इसी प्रवृति के कारण गियार्दो ब्रूनो को अपनी जान गवानी पड़ी और गैलिलियो को 40 वर्ष जेल में रहना पड़ा |
यहाँ मैं ये स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि अध्यात्म भी उतना ही प्रमाणिक विज्ञान है जितना भौतिक विज्ञान है | जिस प्रकार भौतिक विज्ञान के सभी नियम सब पर समान रूप से लागू होते है, उसी प्रकार अध्यात्म विज्ञान के भी सभी नियम सब पर बिना किसी अपवाद के समान रूप से लागु होते है और यह मेरा परम सौभाग्य रहा कि मुझे इस जीवन में अध्यात्म के कुछ महान वैज्ञानिको का पावन सानिध्य प्राप्त हुआ | लेकिन ये सौभाग्य सभी का हो सकता है…..सवाल सिर्फ चाहत और मान्यता का है | गणित के कुछ सवाल ऐसे भी होते है जिन्हें हल करने की शुरुआत मान्यता से होती है| जो हम चाहते नहीं वो हमें दिखता भी नहीं| हमारी जानकारी हमारी अज्ञानता का छोटा-सा हिस्सा है|