एक व्यक्ति एक घोडे पर सवार होकर कही भागा जा रहा था। किसी ने पूछा कि कहा जा रहे हो भाई। उस व्यक्ति ने कहा- मुझे नही पता, घोड़े से पूछो। क्या हमें पता है कि हमारे मन का घोड़ा हमें कहा ले जा रहा है? ध्यान मन रुपी इस घोड़े की लगाम है। जरा कल्पना कीजिए कि एक बेकाबू घोड़े के घुड़सवार का क्या हाल होगा। मन एक गाड़ी की तरह है जो कि बढिया साधन है लेकिन बेकाबू होने पर खतरनाक भी है। यह आत्मा के यंत्र की तरह है और यंत्र नियंत्रण में ही अच्छा लगता है। ध्यान मन को नियंत्रित करने की कला है।

ध्यान की शुरूआत एकाग्रता से होती है और एकाग्रता का सम्बन्ध मन से है। मन में जब तक विचार रहते है, तब तक मन गतिशील रहता है। विचार शून्य अवस्था में यह एकाग्र हो जाता है। जैसे कि सोते वक्त विचारों के शान्त होते ही नींद आ जाती है और जब तक विचार चलते रहते है, तब तक नींद भी नहीं आती। मनोविज्ञान में इसे non material कहा गया है। यानी यह अपदार्थ तत्व है। मन एवं मस्तिष्क एक नहीं है। यह हमारे मस्तिष्क से भिन्न है अर्थात मन कोई द्रव्य नहीं है, जबकि मस्तिष्क एक द्रव्य है। मस्तिष्क का एक निश्चित आकार है, मन का नहीं। एकाग्रता का सम्बन्ध मन से है मस्तिष्क से नहीं। मन का अपना एक Mechanism है। यदि हम मन के तन्त्र को समझना चाहते है तो आईए थोड़ा सा इसकी कार्यप्रणाली पर गौर करे-

  1. कोई भी व्यक्ति दो मानसिक कार्य एक साथ नही कर सकता। क्या आप ढोल की धमक और घण्टी की खनक को एक साथ गिन सकते है?
  2. मन जिस अवस्था में होता है इसे वही सच लगता है। जब मन सपने में होता है तो हमें वह सच प्रतीत होता है। यदि सपने में हमें कोई शेर दिखता है तो हम यह नहीं सोच सकते कि यह सपने का शेर है मैं इससे क्यूं ड़रु।
  3.  हमें ऐसा सपना नही आ सकता जिससे हमारा मन पहले से ही परीचित ना हो, क्या सपने में हमने कभी किसी मछली को कार चलाते देखा है? क्योंकि अवचेतन कुछ भी नया नही सोच सकता।
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