“द्वैत के रूप में तुम जो कुछ भी देखते हो वह असत्य है” – शंकराचार्य

“जो भी बहुलता हमे दिखाई देती है वह वास्तविक नहीं है”-  E. Schrodinger

(From the book- My View of the world)

यदि बिना भौतिक पिंडो के कही कोई खाली स्थान है तो वह कोई स्थान ही नहीं है- बुद्ध

सापेक्षवाद के अनुसार भौतिकता से भिन्न स्थान का कोई अस्तित्व नही होता- आइन्स्टीन (From the book- Ideas & Opinion)

उपरोक्त वैज्ञानिक और अध्यात्मिक सत्य में क्या अंतर है? कोई भी नहीं | संत और वैज्ञानिक दोनों ही सत्य की खोज पूर्वाग्रह से मुक्त होकर करते हैं| जो सत्याग्रही है उसे पूर्वाग्रही नहीं होना चाहिए| पिछले 300 वर्षों से विज्ञान और धर्म को परस्पर विरोधी के रूप में देखा जाने लगा था| परंतु अब आधुनिक भौतिकी की कुछ अद्भुत खोजो ने विज्ञान को अध्यात्म की दहलीज पर ला खड़ा किया है | आधुनिक भौतिकी पारम्परिक भौतिक विज्ञान से इस रूप में भिन्न है कि यह अब अध्यात्मिक तथ्यों का विरोध नहीं, समर्थन करती है | सापेक्षवाद का सिद्धांत और क्वांटम भौतिकी ने विज्ञान की अवधारणा को संतों की दहलीज तक ला दिया है| अनिश्चितता का सिद्धांत क्वांटम फिजिक्स का अनमोल उपहार है| इस सिद्धांत में अध्यात्म की गूंज है|

भारत के संत- महात्माओं की समय, स्थान और जीवन की पहेली के बारे में अवधारणाएं बिल्कुल स्पष्ट थी| वे आत्मा आंख से देखते थे और उनकी दृष्टि इस सत्य के अनुभव के लिए किसी दूरबीन अथवा सूक्ष्मदर्शी की मोहताज नहीं थी| भारतीय महात्माओं ने बहुत जल्दी इच्छा और जरूरत के रहस्य को समझ लिया था| सबकी जरूरते एक जैसी होती है लेकिन इच्छाएं भिन्न-भिन्न है| वे इस तथ्य को जान चुके थे कि मन की संतुष्टि किसी भी भौतिक स्तर अथवा वस्तु से नहीं होगी और उन्होंने इच्छापूर्ति के अंतहीन मैराथन से अपने आपको अलग करते हुए मन की शांति के लिए भीतर की ओर चल पड़े| दूसरी तरफ यूरोप और भूमध्यसागरीय प्रदेशों के वैज्ञानिक सत्य की खोज में बाहर की तरफ चल पड़े| संतो की अंतर्दृष्टि के द्वारा जाने गए सत्य का हाल ही की वैज्ञानिक खोजों से बड़ा नजदीक का संबंध है| यह अद्भुत बात है कि दोनों के द्वारा बताये गये तथ्य एक जैसे हैं|

मेरा मानना है कि विज्ञान अध्यात्म का वह हिस्सा है जिसे जान लिया गया है और अध्यात्म विज्ञान का वह हिस्सा है, जिसे जानना अभी बाकि है | अध्यात्म पूर्ण विज्ञान है और विज्ञान एक अधूरा अध्यात्म| आधुनिक विज्ञान ने परंपरागत विज्ञान की अनेक अवधारणाओं को ध्वस्त कर दिया है| समय, स्थान, प्रकाश,और कण आदि की बहुत सी अवधारणाएं अब बदल चुकी है| ध्यान हमें इस योग्य बनाता है कि हम आध्यात्म में विज्ञान और विज्ञान में अध्यात्म खोज सकें| ध्यान हमारी अंतर्दृष्टि को प्रखर करता है और अंतर्दृष्टि के बिना बुद्धि अंधी है| ध्यान शरीर की प्रयोगशाला में एक अलौकिक प्रयोग है| दरअसल संतों का विज्ञान Subjective है और वैज्ञानिकों का ज्ञान Objective है| लेकिन सत्य तो सबके लिए सदा एक सा ही रहता है | स्पिनोजा ने कहा है सत्य किसी की मनमानी इच्छा पर निर्भर नहीं करता| यदि कोई व्यक्ति अग्नि में अपना हाथ देता है तो अग्नि को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह हाथ किसका है| मैं यह कहना चाहता हूं कि जो विज्ञान के थर्मामीटर का प्रयोग अध्यात्मिक तथ्यों की अनदेखी करने के लिए करते हैं वे नादान हैं| विज्ञान की काल यात्रा अध्यात्म की तरफ ही बढ़ रही है

जरा अरस्तु के वक्तव्य पर विचार कीजिये| उन्होंने कहा था कि पदार्थ को अनंत तक विभाजित किया जा सकता है| हालांकि परमाणु की खोज(1808) के बाद कुछ समय तक यह माना जाने लगा की पदार्थ का वह अंतिम कण खोज लिया गया है जिसे और अधिक विभाजित नहीं किया जा सकता| लेकिन यह क्या……..डाल्टन के बाद के वैज्ञानिकों ने जब उस परमाणु के भीतर छलांग लगाई तो 1897 में  थॉमसन बाबू ने इलेक्ट्रान की, 1911 में रदरफोर्ड ने प्रोटोन की, 1932 में चैडविक ने न्यूट्रॉन की, 1964 में जेलमैन और ज्वैग ने क्वार्क की और फिर सत्येन्द्र नाथ बोस ने बोसॉन खोज निकाला| फिलहाल इसे ही गॉड पार्टिकल कहा जा रहा है जिसे हिग्स बोसॉन की संज्ञा दी गयी है| लेकिन मैं पूरी तरह आश्वस्त हूँ की यह भी वह अविभाजित कण नहीं है| लेकिन इस भागमभाग में एक अलग ही कहानी बन गयी| इसी दौरान बर्नेर हेजनबर्ग महाशय ने घोषणा कर दी की कण, कण है ही नहीं वो तो तरंग है| हाँ, क्वांटम भौतिकी यही कहती है| आइन्स्टीन महोदय ने जब यह सुना तो कहा की ऐसा लगा जैसे किसी ने पैरो के नीचे से जमीन ही खींच ली हो| ये सदी भौतिक और अभौतिक का संगम युग है। ये मन व आत्मा के रहस्यो को जानने की सदी है और स्वागत है आपका इस 21वीं सदी में।

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