हमारे दर्शन में 108 संख्या को इतना महत्व क्यों दिया जाता है। इस महत्व का मूल कारण ज्योतिषशास्त्र है। हमारे महर्षियों ने आकाशचक्र को 12 राशियों और 27 नक्षत्रों में विभाजित किया है। प्रत्येक राशि में 9 नवांश होते है। इस प्रकार कुल 12 x 9 = 108 नवांश होते है। प्रत्येक नवांश का मान 3° 20′ होता है और जब हम 3° 20′ को 108 से गुना करते है तो कुल योग 360° बन जाता है। इसी प्रकार प्रत्येक नक्षत्र में भी चार चरण होते है और प्रत्येक चरण का मान 3°20′ होता है और जब 27 नक्षत्रों को 4 से गुना करते है तो भी 108 संख्या ही प्राप्त होती है। राशि-नवांश और नक्षत्र-चरण दोनों का मान बराबर होने के कारण नवांश का महत्व और भी बढ़ जाता है। 360° का एक वृत्त बन जाता है जो कि शून्य जैसा दिखाई देता है और शून्य एकमात्र पूर्ण संख्या (whole number) है। अतः पूर्णता के प्रतीक के तौर पर 108 संख्या को भारतीय दर्शन के अनेक मतों ने अपनाया। दरअसल शून्य बेहद रहस्यवादी अंक है । इसी संख्या के आधार पर दूसरी सदी के बौद्ध दार्शनिक नागार्जुन ने शून्यवाद दर्शन की स्थापना की । यही वजह है कि मंत्रजाप की माला में भी 108 मनके ही होते है। लेकिन इसका अर्थ ये नहीं है की 108 बार ही परमात्मा के नाम का जाप करना चाहिए। यहाँ 108 संख्या पूर्णता का बोधक है अतः नामजप पूर्णता प्राप्त होने तक जपना चाहिए। क्योंकि इबादत का गिनती से कोई सम्बन्ध नहीं होता। किसी महात्मा ने कहा है कि –
“वह सिजदा क्या हुआ जिसमे अहसास सर उठाने का । इबादत और बाकायदे होश तौहीने इबादत है ।”
नाड़ी ज्योतिष दक्षिण भारत की एक उत्कृष्ठ शाखा है। ऐसी मान्यता है की महर्षियों ने हजारों साल पहले ही ताड़पत्रों पर लोगो का भविष्य लिख दिया था और ये पाण्डुलिपि जातक के अंगूठे के निशान के आधार पर खोजी जाती है। यहाँ एक बात गौर करने लायक है कि महर्षियों ने सभी मनुष्यों के अंगूठे के निशानों को 108 भागो में ही विभाजित किया है। इसी कारण 108संख्या को हिन्दूधर्म में अधिक महत्व दिया है।