यह एक दिव्य अनुभव है। समाधि की अवस्था में यह बिंदु दोनों भवो के ठीक मध्य में प्रकट होता है और आत्मा को ठीक उसी प्रकार खींच लेता है। जैसे म्यान से तलवार खींच ली जाती है। यह बिंदु हमारे शरीर में आज्ञा चक्र पर है। इस स्थान को हम तीसरा तिल या दसवा द्वार भी कहते है। यह बिंदु खोजने से नहीं आता अपितु पूर्ण एकाग्रता की अवस्था में एकाएक प्रकट होता है और आत्मा को अपने भीतर समेट कर दूसरी तरफ भेज देता है। इस बिंदु का कोई स्थूल अस्तित्व नहीं है। अतः किसी भी भौतिक क्रिया का इससे कोई सम्बन्ध नहीं है। इसे ही संत साहित्य में एक नुक्ता, खसखस का दाना, नुक्ता- ए- सवैदा, घर दर, दसवा दरवाजा कहते है। जब तक एक भी विचार बाकि है तब तक यह बिंदु प्रकट नहीं होता और जब यह बिंदु प्रकट होता है तो हम कुछ भी सोच नहीं सकते। या यू कहे कि जब तक हमारा देहभान रहता तब तक जगत भान भी रहेगा। देह और जगत सह अस्तित्व हैं। देह और जगत से जोड़ने वाली चीज़ हमारा मन है तथा मन और विचार भी सह अस्तित्व है। विचारो के विलुप्त होने पर मन भी विलुप्त हो जाता हैं और मन के विलुप्त होने पर देह भान गायब हो जाता है और देहभान के न रहने पर जगत भान भी नहीं रहता। यह एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। जिस दिन भी यह घटना घटती है उसी दिन यह परम चेतन बिंदु प्रकट हो जाता है और आत्मा को शरीर से खींच कर सविकल्प समाधि की अवस्था में पहुंचा देता है।
अभी हम त्रिसत्तात्मक अवस्था में है अर्थात चेतन मन की वर्तमान अवस्था में तीन चीजों की सत्ता है- हम खुद, वह परमसत्ता और बाकि सबकुछ | इसे अध्यात्मिक विज्ञान में जीव, ब्रह्म और प्रकृति कहते है। सविकल्प समाधि की अवस्था में हम इस त्रैत से द्वैत के आयाम में पहुँच जाते है। वहां जीव और ब्रह्म ही रहते है, प्रकृति का लोप हो जाता है। इसे ही तुरीयावस्था कहते है तथा निर्विकल्प समाधि में अद्वैत की अवस्था आ जाती है यानि ब्रह्म के सिवाय कुछ भी शेष नहीं रहता। इसे तुरीयातीत अर्थात ब्राह्मी अवस्था कहा जाता है। यही परमानंद की अवस्था है। दरअसल यह अवस्था विचार के आयाम से परे है। इसीलिए कठ उपनिषद में लिखा- “जो अज्ञानी है वो अंधकार में है और जो ज्ञानी है वे उससे भी ज्यादा अंधकार में है।” जरा उस व्यक्ति की कल्पना करे जो diving equipment पहने हुए गलियों और बाजारों में घूम रहा हो और सोच रहा हो की ये समुद्री यंत्र उसकी चलने में सहायता कर रहे हैं, जिनका वजन ही लगभग 25 KG है, जो कि पानी में महसूस नहीं होता। ठीक यही स्थिति पारलौकिक ज्ञान के सन्दर्भ में बुद्धि की है।