मृत्यु के दृश्य ने महात्मा बुद्ध पर गहरा असर डाला। आइये आज बुद्ध जयंती के अवसर पर उन्हें याद करे। यदि कोई इस तरह जीये कि वह मरेगा ही नहीं या इस तरह मरे कि वह जियेगा ही नहीं तो वह कभी सुखी नहीं रह सकता। जिस प्रकार अन्धकार का कोई अस्तित्व नहीं, प्रकाश की अनुपस्थिति ही अन्धकार है। उसी प्रकार मृत्यु का अपना कोई अस्तित्व नहीं, चेतना की अनुपस्थिति ही मृत्यु है। जहाँ दीपक है वहा कोई अँधेरा नहीं होता। इसी प्रकार चेतना के स्तर पर कोई मृत्यु नहीं है। दीपक को एक कमरे में से यदि दूसरे कमरे में ले जाया जाये तो पहले कमरे में अँधेरा हो जाता है, यह पहले कमरे की मृत्यु है, दीपक की नहीं।
जब पहली बार महात्मा बुद्ध ने मृत्यु को देखा तो उन्होंने अपने सारथी से पूछा कि क्या सबकी मृत्यु होती है? उनके सारथी ने कहा- जी महाराज, सबको एक न एक दिन मरना पड़ेगा। बुद्ध ने फिर पूछा कि बाकि लोगो को भी यह पता है क्या? सारथी ने कहा- जी हाँ महाराज। तब बुद्ध ने सोचा कि मृत्यु को जान कर भी यदि कोई निश्चिंत हो कर जी रहा है तो या तो वह मूर्ख है या मृत्यु को जीत चुका है। लेकिन न तो मैं मूर्ख हूँ और ना ही मैंने अभी मृत्यु पर विजय पाई है। इसी विचार के साथ उन्होंने सबकुछ त्याग दिया और आखिरकार अपने शाश्वत अस्तित्व को प्राप्त किया। यदि हमें एक चिड़ियाघर के अन्दर जाने के बाद यह पता चले कि शेर पिंजरे से बाहर है, तो हमारी मनोदशा कैसी होगी? इस संसार रूपी चिड़ियाघर का मृत्यु रुपी शेर भी बाहर है। हम भले ही उससे बे-खबर है लेकिन वो हमसे बा-खबर है। याद रखिये मृत्यु उनके लिए अत्यधिक कष्टदायक होती है-
1. जो भौतिक जगत को ही सब कुछ मानते हैं।
2. जो सिर्फ जन्म और मृत्यु के बीच की अवधि को ही जीवन समझते हैं।
3. जिनके लिए अध्यात्म एक महत्वहीन विषय हैं।
उनके लिए मृत्यु का मतलब सब कुछ खत्म होना है, क्योंकि उनके सारे सुखो की बुनियाद भौतिक वस्तुओं से जुड़ाव और शरीर की तीमारदारी पर ही आधारित है। जबकि अलगाव और वृद्धावस्था उपरोक्त दोनों तथ्यों का अभिन्न पहलू है। जिनके लिए जुड़ाव महत्वपूर्ण है, उनके लिए अलगाव निसंदेह दुखदाई रहेगा। अतः मृत्यु के वक्त उनका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है।
जबकि…..
1. जो जीवन की अनंतता में यकीन करते हुए आध्यात्मिक उन्नति की तरफ भी थोड़ा-बहुत ध्यान देते हैं।
2. जो इस अहसास के साथ कर्म करते हैं कि उनके कर्म उन तक लौट कर वापस जरूर आएंगे, क्योंकि कर्म अपने कर्ता को सात समंदर पार भी खोज लेते हैं।
मृत्यु उनके लिए एक सुखद अनुभव बन जाती है, एक नई शुरुआत बन जाती है। मेरे साथियों! मृत्यु और समाधि दोनों का मकसद चेतना का विकास है, हम किसे चुनना पसंद करेंगे? चुनाव करते हुए हमे ये जरूर ध्यान रखना है कि जिसे हम चुनते है, हम भी उसके द्वारा चुन लिए जाते है।