मैं जब भी राशिचक्र को देखता हूँ तो अध्यात्म और ज्योतिष का सम्बन्ध स्पष्ट नज़र आता है। दरअसल ज्योतिष की सभी अवधारणाओं की तार्किकता अध्यात्म में है। हम यह अच्छी तरह जानते हैं कि ज्योतिष के सभी महर्षि दार्शनिक भी थे और जब उनकी समाधि लगी उन्हें अंतर्ज्ञान हुआ तो उसके आधार पर उन्होंने जो आंतरिक ब्रह्मांड देखा। उसका हमारे भूत और भविष्य से संबंध को देखते हुए उसका वर्णन किया। अतः ज्योतिष की सभी प्रकार की अवधारणाओं के मूल में अध्यात्म और दर्शनशास्त्र है। उदाहरण के तौर पर यहाँ हम चंद्रमा की स्थिति का दार्शनिक अवलोकन करेंगे।
मनुष्य जो कुछ भी सोचता है मन के द्वारा सोचता है और मन का प्रतिनिधित्व चंद्रमा करता है। मन के इतने रूपों का वर्णन तो मनोविज्ञान में भी नहीं है जितना विस्तार से महर्षियों ने अपने ग्रंथो में किया है। 12 प्रकार की चंद्रमा की अवस्थाएं होती है, 36 प्रकार की चन्द्र वेलाएं है और 60 प्रकार की चन्द्र क्रियाओं का महर्षियों ने वर्णन किया है। अब चूँकि मेरा रुझान किसी भी ज्ञान के अंतिम कारण को जानने की तरफ रहता है इसलिए चंद्रमा के इन आयामों की संख्या 12 , 36 और 60 ही क्यों है इसे मैंने जानना चाहा तो इसका जवाब ज्योतिषशास्त्र में नहीं दर्शनशास्त्र में है। दरअसल ज्योतिष की सभी अवधारणाओं की तार्किकता अध्यात्म में है। चंद्रमा की 12 अवस्थाओं का सम्बन्ध 12 राशियों से है और इन 12 राशियों का सम्बन्ध हमारे शरीर के 12 चक्रों से है जो की 6 आँखों से नीचे है और 6 आँखों से ऊपर। जन्मपत्री के 6 भाव प्रकाशित है और 6 अँधेरे में है। इसी प्रकार इन 12 चक्रों में से 6 ज्ञात है और 6 अज्ञात। महर्षियों ने चंद्रमा की 12 अवस्थाओं को 36 वेलाओं में विभाजित किया है इस विभाजन का आधार 3 गुण है। समय और स्थान की इस दुनिया में तीन प्रकार की अवस्थाएं है- उत्पत्ति, स्थिति और संहार। इन्ही के आधार पर इस संसार में तीन गुणों का शासन है। अतः प्रत्येक अवस्था के भीतर 3 सूक्ष्म अवस्थाएं है। तो इस प्रकार गुणात्मक आधार पर 36 चन्द्रवेलाएं हो जाती है। आगे फिर 5 तत्व है तो 12 अवस्थाओं को 5 से गुना करने पर 60 संख्या आती है। तात्विक आधार पर चन्द्र अवस्थाओं का विभाजन करने पर 60 चन्द्र क्रियाएँ होती है। यह है ज्योतिषिय अवधारणाओं की दार्शनिक मीमांसा। दूसरा और सातवां घर मारकेश इसलिए कहलाता है क्योंकि ये दोनों घर “धन और वासना” के है और यही दोनों चीजे मनुष्य को अति की तरफ ले जाती है और हम सब जानते है कि “अति और अंत” एक ही सिक्के के दो पहलू है।
ज्योतिष एक भौतिक विज्ञान नहीं है यह पराभौतिक विज्ञान है और दोनों की समझ का आयाम अलग होता है। एक छोटे से तथ्य पर यह विचार करते हुए हम ये समझने का प्रयास करते हैं। सात रंगों को मिलाने से सफेद रंग बन जाता है लेकिन यदि वही सात रंग हम बाज़ार से लेकर आए और एक पात्र में उनको मिला दे तो सफेद रंग बनने की बजाय काला अथवा गहरा नीला रंग बन जाएगा। यानी कि जब रंग वही है लेकिन जब उन्हें भौतिक स्तर पर मिलाया जाता है तो वे काले या गहरे नीले रंग में बदल जाते हैं और जब उन्हें विद्युत चुंबकीय तरंगों (प्रकाश तरंगों) के रूप में मिलाया जाता है तो वह सफेद रंग बन जाता है। ठीक इसी प्रकार ज्योतिष शास्त्र और दर्शन शास्त्र को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। यही वजह है कि हमारे सभी महर्षि ज्योतिर्विद होने के साथ-साथ दार्शनिक भी थे। जैमिनी महर्षि ने महर्षि पराशर से ज्योतिष विद्या का ज्ञान प्राप्त किया और इसके साथ वे भारत के 6 प्रमुख दार्शनिक परंपराओं में से एक मीमांसा दर्शन के प्रवर्तक भी थे।