हमारे महर्षियों ने आकाशचक्र को 12 राशियों और 27 नक्षत्रों में विभाजित किया। इन राशियों और नक्षत्रों को तीन गुणों (सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण) के आधार पर तीन खंडों में विभाजित किया गया है। अतः राशिचक्र में केवल तीन ऐसी स्थितियां होती है जब राशि और नक्षत्र दोनों एक साथ समाप्त हो जाते है। इन्ही समाप्ति स्थल से नई राशि और नक्षत्र की शुरुआत होती है। इन सन्धियों पर पड़ने वाले नक्षत्रों को मूल नक्षत्र कहते है। इनकी कुल संख्या छह है। एक तरह से मूल नक्षत्र तीन राशिखंडों के जोड़ है। जोड़ चाहे किसी भी प्रकार का हो, वहां कुछ न कुछ अशान्ति रहती ही है। जैसे हड्डियों का जोड़, ऋतुओं का जोड़, सीमाओं का जोड़, रास्तों का जोड़ आदि। वहां पर अतिरिक्त ध्यान रखने की जरुरत होती है। इसी प्रकार शास्त्रों के अनुसार इन नक्षत्रों में जन्म लेने वाले जातक की Immunity भी कुछ कमजोर होती है। इसीलिए महर्षियों ने ऐसे जातक के लिए मूलशांति का प्रावधान किया है। मूलशांति की प्रक्रिया ऐसी है, जिसका सीधा सम्बन्ध बच्चे की Immunity के Boost up से है और Vaccination Process का भी यही मकसद है। मूल शांति के लिए 27 पेड़ो के पत्ते और 27 गांवों की मिटटी को एकत्र करके 27 कुओं के पानी में उबालकर बालक को नहलाया जाता है। इसके पीछे वैज्ञानिक रहस्य यह है कि 27 पेड़ो के पत्ते और 27 गांवों की मिटटी के Bacteria 100 डिग्री के पानी में उसी अवस्था में पंहुच जाते है जिस अवस्था में Vaccin में होते है। इस Attenuated अवस्था के Bacteria & Virus बच्चे के संपर्क में आने से बच्चे की Immunity उनके प्रति Antibody बना लेती है और बच्चा उस जलवायु में स्वास्थ्यपूर्वक जीने की क्षमता अर्जित कर लेता है। लगभग ऐसा ही Vaccination से होता है। प्राचीनकाल में टीकाकरण के अभाव में मूलशांति की प्रक्रिया अपनायी जाती थी, लेकिन आज के आधुनिक युग में मूलशांति से ज्यादा महत्व Vaccination का ही है।
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