क्या ऐसा संभव है कि किसी के बोले बिना ही उसके मन की जिज्ञासा को जाना जा सके। वैसे तो यह बात दूर की कौड़ी लगती है, एक कल्पना ही प्रतीत होती है मगर आप क्या कहेंगे यदि महर्षियों ने इसे संभव कर दिखाया। ज्योतिष की एक शाखा है- मूक प्रश्न विज्ञान। इस शाखा के अंतर्गत जब कोई जातक किसी ज्योतिर्विद के पास आता है तो उसके बिना पूछे ही उसके मन की बात जानी जा सकती है। महर्षियों ने इस प्रकार की टेक्नोलॉजी इजाद की है कि बगैर पूछे ही यह जाना जा सके कि उसके मन में क्या चल रहा है, उसका क्या सवाल है। इस तरह के प्रश्नों को जानने के लिए कुछ तकनीकों का वर्णन वैदिक ज्योतिष के ग्रंथों में है और उन्हीं में से एक तकनीक का मैंने प्रयोग किया है।
मेरे पास किसी जातक का फोन आया कि वह मुझसे मिलना चाहता है। मैंने उसे एक निश्चित समय दिया और फोन रखने के बाद मेरे मन में विचार आया कि उसके मन में क्या चल रहा है, वह क्या जानना चाहता है। तो मैंने मूक प्रश्न विज्ञान की तकनीक का प्रयोग करते हुए 12 कौड़ियाँ अपनी मेज पर डाल दी और उनकी स्थिति का अवलोकन करते हुए एक कागज उठाया और उसका सवाल लिख दिया। फिर वह कागज मैंने अपनी मेज़ के एक तरफ रख दिया। जब अपने निश्चित समय पर वह जातक आया और मैंने उसकी जन्मपत्री बनाकर उससे पूछा कि आपका प्रश्न क्या है तो उसका प्रश्न जानकर मैं हैरान था कि उसका सवाल वही था जो मैंने उस कागज पर लिखा है। मैंने उस जातक को कहा कि यह कागज उठा लो और पढ़ो। वह भी यह देखकर हैरान रह गया। उसके बाद मैंने उसके प्रश्न का जवाब दिया। तो इस प्रकार मेरे कुछ अनुभवों के आधार पर अलग-अलग परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग तकनीकों का प्रयोग करते हुए मैंने पाया कि अज्ञात प्रश्नों को जाना जा सकता है।
अब सवाल यह है कि यह कैसे संभव है। मेरा मानना है कि इसके तीन मूल सिद्धांत है-
Theory of relativity (Einstein)
Third law of motion (Newton)
Synchronization of mind & moon
यह सारा ब्रह्मांड एक इकाई है और हर कोई एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। एक की स्थिति से दूसरे की स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है, क्योंकि समय और स्थान के इस संसार में सापेक्षता का सिद्धांत लागू है और सापेक्षता के सिद्धांत के अनुसार एक चीज की स्थिति किसी दूसरी चीज की स्थिति के सापेक्ष होती है। जैसे मोबाइल को जब हम एक निश्चित Brightness पर निर्धारित करते है तो वही Brightness अंधेरे में हमें तेज लगेगी और हम दिन के उजाले में अपने फोन की स्क्रीन को देखेंगे तो वह हमें कम लगेगी। अब Brightness तो उतनी ही है लेकिन परिवेष बदलने पर कम और ज्यादा दिखाई देगी। इसी प्रकार सूरज जिसे लाल दिखता है, इसका मतलब है की हम सुबह या शाम को देख रहे है, वरना सूरज का रंग तो सफेद ही है।
न्यूटन की गति के तीसरे नियम के अनुसार हर क्रिया की उतनी ही प्रतिक्रिया विपरीत दिशा में अवश्य होती है और प्रतिक्रिया का याही सिद्धान्त मूक प्रश्न विधा में काम आता है। बहुत बार हमारा मन और जीवन प्रतिक्रिया में ही व्यतीत हो जाता है। हम पूरा जीवन प्रतिक्रिया में ही रहते हैं लेकिन हमें यह नहीं पता इस प्रतिक्रिया के पीछे की जो क्रिया है उसकी जड़ें हमारे पिछले जन्मों में है। लेकिन एक बात तो सत्य है प्रतिक्रिया पूर्व निर्धारित होती है और जो कुछ भी पूर्व निर्धारित है उसे जाना जा सकता है। यही विचार मूक प्रश्न विज्ञान की तकनीक का आधार है।
चंद्रमा और मन का सम्बंध भी मूक प्रश्न विधा में काम आता है। यहाँ एक बात और है की मनुष्य जो कुछ भी सोचता है मन के द्वारा सोचता है और मन का प्रतिनिधित्व चंद्रमा करता है अतः चंद्रमा की स्थिति अज्ञात प्रश्न को जानने में अहम् भूमिका निभाती है। मन के इतने रूपों का वर्णन तो मनोविज्ञान में भी नहीं है जितना विस्तार से महर्षियों ने अपने ग्रंथो में किया है। 12 प्रकार की चंद्रमा की अवस्थाएं होती है, 36 प्रकार की चन्द्र वेलाएं है और 60 प्रकार की चन्द्र क्रियाओं का महर्षियों ने वर्णन किया है। इन सभी 12+36+60=108 प्रकार के दृष्टिकोणों का प्रयोग मूक प्रश्न विज्ञान में होता है। भारतीय गणितज्ञ और ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर ने अपने महत्वपूर्ण ग्रन्थ “दैवज्ञ वल्लभा” में मूक प्रश्न विज्ञान पर प्रकाश डाला है। वराहमिहिर का जन्म 499 ईस्वी में हुआ था और आप राजा विक्रमादित्य के दरबार में नवरत्नों में से एक थे।