शब्द धुन का प्रभाव

एक मामूली से पौधे का खिंचाव भी प्रकाश की ओर होता है। यदि हम एक पौधे को एक ऐसे गत्ते के डिब्बे से ढक दें जिसके एक तरफ से अन्दर प्रकाश जाने के लिए छेद हो तो कुछ दिनों बाद गत्ते हटाने पर हम पाएगे कि उस पौधे का झुकाव रोशनी की तरफ ही था। इसी प्रकार यदि किसी पौधे के पास प्रतिदिन संगीत बजाया जाए तो उसका विकास ज्यादा होता है। क्रेस्कोग्राफ की मदद से पौधों की इस संवेदनशीलता का पता लगाया जा सकता है। अब तो “फोटो-सॉनिक्स“ नाम से विज्ञान की एक नई शाखा का ही उदय हो गया है जिसमें प्रकाश और ध्वनि के प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। पौधे से लेकर आज तक हम जिस “संगीत और प्रकाश“ की तलाश में है वह पूरी होने का समय अब आ गया है। यह मनुष्य जीवन ही इस यात्रा का अंतिम पड़ाव है। यदि अब की बार हम इससे चूक गए तो फिर वापिस वहीं जाना पड़ेगा जहां से शुरूआत की थी क्योंकि यह गोलाई की दौड़ है जिसमें अंतिम पड़ाव के बाद पहला पड़ाव आता है। अतः लक्ष्य यदि चन्द्रमा है तो कार, नाव और जहाज बोझ के सिवाए कुछ भी नहीं है क्योंकि ये तीनों थल, जल और वायु के माध्यम से चलते है। जबकि चंद्रमा तथा पृथ्वी के बीच ये तीनों ही नहीं है। वहां तो केवल शून्य है। अतः शून्य में उड़ने के लिए अंतरीक्षयान चाहिए तथा शब्दधुन ही वह अंतरिक्षयान है जो लघुतम से महतम की ओर ले जाता है। ज्ञान कभी भी परमात्मा तक नहीं पहुंचा सकता। ज्ञान दिशा परिवर्तन करता है, दशा परिवर्तन नहीं। केवल सतगुरू का प्रेम ही हमें परमात्मा तक ले जा सकता है और केवल परमात्मा का प्रेम ही हमें सतगुरू तक ला सकता है। सतगुरू और परमात्मा एक ही सत्ता के साकार और निराकार  ध्रुव है।

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