सभी धर्मों में अनहद शब्द

संसार के सभी महान धर्मो में शब्दधुन का उल्लेख है। सभी धर्मो के महान संतों ने अपनी वाणियों में इसका वर्णन किया है। ब्राह्मी और खरोष्ठी दोनों लिपियों के अर्न्तगत आने वाली लगभग सभी भाषाओं में शब्दधुन का वर्णन मिलता है। सुमेरियन, एकेडियन, हिब्रू, ग्रीक, लेटिन, अंग्रेजी, चाइनीज़, संस्कृत, पाली, अरबी, फारसी, हिन्दी आदि भाषाओं में इसके नाम इस प्रकार हैः-

मैमरा, आनन्दमय ध्वनि, सरोश, अहूनवैर्य, लोगास, नाउस, वरबम, म्युजिक ऑफ सफियर्स, वर्ड, ताओ, कवानयिन, आकाशवाणी, ब्रह्मनाद, उदगीत, शब्दब्रह्म, सोनोरस लाईट, रिंगिंग रेडियेशन, दिव्य ध्वनि, कुन, अम्रे रब्बी, आवाजे मुस्तकीम, बाँगे आसमानी, सौते सरमदी, निदाए सुलतानी, कलामें इलाही, इलाही राग, गैबी आवाज़, शब्दधुन, अखण्ड कीर्तन, धुर की वाणि, दैवी संगीत, अनहद नाद आदि।

ये सभी शब्द समानार्थक है। जिनका शाब्दिक अर्थ शब्द या नाम है और भावार्थ है-प्रकाशमय आवाज़। संसार के सभी महान धर्मों के ग्रथों में इसका वर्णन मिलता है। सुमेरियनों के भजन सग्रंह में, यहुदियों के सैफरयतजीरा में, पारसीयों के जिन्द अवेस्ता और यास्ना में, यूनानियों के फ्रेगमेन्टस और ऐनीडस में, ईसाईयों की बाईबल और चीनियों के धर्मग्रंथ ताओ-ते-चिंग में इसी शब्दधुन की महिमा का वर्णन करते हुए कहा है- “Tao is a great tone as the source of all things” – chuwang Tzu. वैदिक श्रंखला में ऋग्वेद के 10 वें मण्डल के 125 वें सूक्त में, छान्दोग्य और नाद बिन्दु उपनिषद में तथा महाभारत के शान्ति पर्व और तुलसी सतसई में इसी शब्दब्रह्म का उल्लेख है। बौद्धों के सुरंगम सूत्र और ललित विस्तार तथा सुखवती व्यूह और सद्धर्मपुण्डरीका में इसी प्रकाशमय आवाज़ का वर्णन है। इसी प्रकार जैनियों के संगीत समयसार, अंलकार चिन्तामणी, योगदृष्टि समुच्य, कयास पाहुड, जयधवला और स्वम्भू स्त्रोत में इसी दिव्य ध्वनि का वर्णन है। सूफियों के दीवाने-शम्स तबरेज और मसनवी तथा निर्गुण भक्ति धारा के सभी संतों ने शब्दधुन का ही उपदेश दिया है।

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